Wednesday, November 9, 2011

Echo...

They thought,
Their silence would bereave all the doubts.
Little did they know,
The words their eyes spoke...had echo.

Sunday, November 6, 2011

आ जाओ...

कभी सुना है कोई अपने ही बोझ तले दब गया, मिट गया?
मेरे ज़हन में तुम्हारी यादो का वज़न कुछ ज्यादा ही है,
आ जाओ, आ जाओ मुझे छू कर धुंए सा हल्का कर दो

क्या ऐसा नहीं हो सकता, मै जो कुछ भी हूँ वो यहीं रह जाऊं,
और जो कुछ भी नहीं हूँ, उसे लेकर उड़ जाऊं?
आ जाओ, आ जाओ, मेरी मदहोशी को दो पंख दे दो

जब जब तुम्हारी आवाज़ मेरी नज़रों से होकर रूह तक उतरती है,
लोग कहते है मेरे एहसासों में खनक सुनाई देती है,
आ जाओ, आ जाओ मेरी खनक को इक सुर दे दो

जिस मुठ्ठी में कैद कर मैंने अपने होश रखे थे,
उन उंगलियों में जान थोड़ी कम सी हो गयी है,
आ जाओ, आ जाओ उन उंगलियों को कुछ धड़कने दे दो

हर बार जब तुम्हारा दर्द मेरी आखों से बूँद बन कर टपकता है,
उन बूंदों को इक्कठा कर मैंने कई बादल बनाये है,
आ जाओ, आ जाओ मेरे बादलों को आसमान दे दो

जो महसूस तो होता है, पर न दिखता है, न मरता है,
तुम्हारी चाहत मेरे लिए हवा ही तो है, इक छलावा भी
आ जाओ, आ जाओ मेरी फिजां को इक शक्ल दे दो

सफ़र तो तय करना ही है, और कदमो में वो ज़िद भी है,
पर धुंध ने मंजिल छिपा दी है, किधर जाऊं अब खबर नहीं,
आ जाओ, आ जाओ मेरे पैरों को साफ़ राहें दे दो

अपने होठों से फूँक कर बुझा दो उन दीयों को,
जिनकी लौ मेरे सच को रौशन करती है,
आ जाओ, आ जाओ मेरे सच को एक भ्रम दे दो

नादान से मेरे ख़ाबों ने, न जाने क्या पी लिया,
ठोकर खाकर सीखेंगे शायद, होश खोना लाज़मी नहीं,
आ जाओ, आ जाओ मेरे लड़खड़ाते ख़ाबो को अपनी बाहें दे दो

आ जाओ, बस आ जाओ
मेरा सच छोड़ दो, और मेरा हाथ थाम कर मेरे भ्रम को ले जाओ
फिर मुझे तुम्हारी नज़रों से देखने दो,
तुम्हारी साँसों से जीने दो,
तुम्हारे कदमो से चलने दो,
तुम्हारी आदतें सिखने दो,
फिर मुझे तुम्हारी आवाज़ से बयाँ होने दो,
तुम्हारे ग़मो से जव़ा होने दो
तुम्हारी आखों का नूर बनने दो,
और तुम्हारे माथे का ग़ुरूर बनने दो
आ जाओ, आ जाओ
या तो मेरे ख्यालों को एक हकीक़त का महल दे दो
या तो मेरी यादों को एक खूबसूरत ग़ज़ल दे दो

आ जाओ, बस अब तुम आ ही जाओ